ईगो


अजीब सी बात है,
समझ  नहीं पाता मैं।

रह गया सब कुछ पीछे,
इतना पीछे,
कि,

चाहकर भी नहीं पा सकता वो सब,
 रह गया है जो,
अतीत के ऐसे अँधेरे कोने में,
जहां से न उसका आना हो सकता है,
न उसे वर्तमान में लाना।

सोच रहा हूँ बैठा कब से,

क्यों--कब-कैसे,
और किसलिये,
खो गया सब कुछ,
एक पल में,
पाने में जिसे लग गए थे,
कई साल।

चाहता तो हूँ कि,
संभल जाये किसी तरह,
रिश्ते सारे।

पर लगता नहीं संभव,
ऐसा हो पाना।

जानता हूँ कि,
कर सकता हूँ,
ठीक सब।

पर,

ईगो है कि,
रोक लेता है मुझे,
आगे बढ़ने से। 

9 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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